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डिस्लेक्सिया रोग क्या है? कारण, लक्षण व इलाज | Dyslexia Causes and Symptoms in Hindi

डिस्लेक्सिया रोग क्या है? | Dyslexia in Hindi

डिस्लेक्सिया एक न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क व तंत्रिकाओं को प्रभावित करने वाली) स्थिति है (1)। इसे डेवलपमेंटल रीडिंग डिसऑर्डर भी कहते हैं। यह सीखने और पढ़ने से जुड़ी एक समस्या है। इसके होने पर मस्तिष्क कुछ प्रतीकों या चिह्नों की न तो सही पहचान कर पाता है और न ही उन्हें याद रख पाता है (2)। 

मतलब इसके कारण अक्षर पहचानने, लिखने और बोलने में गलती हो सकती है। उदाहरण के तौर पर बच्चे का सीधे अक्षर को उल्टा लिखना, जैसे अंग्रेजी के छोटे लेटर में ‘b’ व ‘d’ लिखते समय उलझन महसूस होना।

अब बात करते हैं डिस्लेक्सिया से शिकार होने वाले बच्चों का आंकड़ा कितना गंभीर है।

भारतीय बच्चों में डिस्लेक्सिया कितना आम है?

भारतीय बच्चों में डिस्लेक्सिया होना आम माना जाता है। यह बात एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) पर प्रकाशित एक शोध से स्पष्ट है। शोध में माना गया है कि दक्षिण भारत में डिस्लेक्सिया जैसे स्पेशफिक लर्निंग डिसऑर्डर के मामले 16.49 फीसदी देखे गए। 

इसमें 12.57 फीसदी बच्चों में पढ़ने, 15.6 फीसदी बच्चों में लिखने और 9.93 फीसदी बच्चों में गणित से जुड़ी परेशानी देखी गई। यह भी पाया गया है कि यह समस्या लड़कियों के मुकाबले लड़कों को अधिक प्रभावित करती है (3)

यहां अब हम डिस्लेक्सिया के प्रकार के बारे में बताएंगे।

डिस्लेक्सिया के प्रकार | Types of Dyslexia in Hindi

डिस्लेक्सिया के कई प्रकार होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं (4):

1. शब्दों की अवस्था का डिस्लेक्सिया (लेटर पोजिशन डिस्लेक्सिया)

इस प्रकार के डिल्सेक्सिया में बच्चे शब्दों को पढ़ तो पाते हैं, लेकिन उनकी स्थिति की सही पहचान करने में कठिनाई महसूस करते हैं। जैसे  कोई शब्द लिखने के लिए कहा जाए, तो अक्षरों को आगे-पीछे लिखना। 

कुछ अंग्रेजी शब्दों के उदाहरण के तौर पर ‘Cloud’ को ‘Could’ लिखना, ‘Fried’ को ‘Fired’ लिखना या ‘Dairy’ को ‘Diary’ लिखना आदि (4)। इसे प्राथमिक डिस्लेक्सिया का लक्षण माना जाता है (5)

2. अटेंशनल डिस्लेक्सिया

अटेंशनल डिस्लेक्सिया की स्थिति में बच्चा अक्षरों व शब्दों की सही पहचान कर सकता है, लेकिन अगले शब्द के अक्षर पर उसे उलझन होती है। उदाहरण के तौर पर, ‘Fig Tree’ को ‘ Fig Free’ या ‘Tie Tree’ लिखना (6)

3. लेटर आइडेंटिटी डिस्लेक्सिया (अक्षर की पहचान न कर पाना)

इस प्रकार के डिस्लेक्सिया में बच्चे एक सामान दिखाई देने वाले अक्षरों को पहचानने और उनका उच्चारण (एनकोड) करने में कठिनाई महसूस होती है। उदाहरण के तौर पर, ‘TRIAL’ को ‘TRAIL’ पढ़ सकते हैं और ‘JUGDE’ को ‘JUDGE’ पढ़ सकते हैं (7)

4. नेगलेक्ट डिस्लेक्सिया

नेगलेक्ट डिस्लेक्सिया बच्चे के पढ़ने की क्षमता प्रभावित करता है। इसके कारण बच्चा पढ़ते समय गलतियां कर सकता है। बच्चा किसी शब्द को पढ़ते समय शुरुआती अक्षरों को पढ़ना भूल सकता है या उस शब्द के उच्चारण में नए अक्षर जोड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर बच्चा ‘Lend’ को ‘Blend’ पढ़ना  (8)

5. ऑर्थोग्राफिक इनपुट बफर डिस्लेक्सिया या दृश्य डिस्लेक्सिया

इस प्रकार के डिस्लेक्सिया के कारण बच्चा दिखने वाले सामान शब्द के आधार पर शब्दों को पढ़ने लगता है। इसकी वजह से बच्चा शब्दों को पढ़ते समय उसमें नए शब्द जोड़ता है या किसी शब्द को न पढ़ने की गलतियां करने लगता है (4)

6. सरफेस डिस्लेक्सिया

सरफेस डिस्लेक्सिया में बच्चे को शाब्दिक ज्ञान की कमी होती है। इस वजह से बच्चा बार-बार पढ़ने वाले शब्दों का उच्चारण सही से कर सकता है, लेकिन उस शब्द के जैसा मिलता-जुलता शब्द देखने पर उसका उच्चारण गलत कर सकता है (4)

7. फोनलाजिकल डिस्लेक्सिया (स्वरविज्ञान संबंधी डिस्लेक्सिया)

इस प्रकार का डिस्लेक्सिया होने पर बच्चे को एक जैसे दिखने वाले दूसरे शब्दों को पढ़ने व लिखने में कठिनाई हो सकती है। उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी का ‘p’ व ‘b’ शब्द। क्योंकि इस तरह के शब्द एक-दूसरे के उल्टे प्रतिबिंब को दर्शाते हैं (4)

8. डीप डिस्लेक्सिया

डीप डिस्लेक्सिया का कारण सिर की चोट, स्ट्रोक, बीमारी या कोई ऑपरेशन हो सकता है। इसके कारण बच्चा शब्दार्थ या वाक्य का प्रतिस्थापन (किसी वस्तु के साथ उसके सही कार्य को दर्शाने) में कठिनाई हो सकती है। 

उदाहरण के तौर पर बच्चा ‘कुत्ता’ पढ़ सकता है, लेकिन वह ‘भौंकता है’ या ‘म्याऊं करती है’, इसका चयन करने में असमर्थ हो सकता है। इसी तरह बच्चा नींबू खट्टा है या नमकीन है, यह भी बताने में असमर्थ हो सकता है (4)

9. सिमेंटिक ऐक्सेस डिस्लेक्सिया

सिमेंटिक ऐक्सेस डिस्लेक्सिया की स्थिति में शब्दों को याद रखने की क्षमता (शब्दावली) और ध्यान लगाने की क्षमता कम हो सकती है। इसके कारण पढ़ते समय बच्चे का ध्यान केंद्र से भटक सकता है और वाक्यों का अर्थ स्पष्ट रूप से समझने में असमर्थता होती है। इस डिस्लेक्सिया से ग्रसित बच्चे नए शब्दों, आकार में छोटे या लिखावट में बड़े शब्दों को पढ़ने में गलतियां कर सकते हैं (4)

इस भाग में हम डिस्लेक्सिया का कारण जानेंगे।

डिस्लेक्सिया होने के कारण | Causes of Dyslexia in Hindi

जैसा लेख में बता चुके हैं कि डिस्लेक्सिया एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसका एक कारण आनुवंशिकता भी हो सकता है। इसके अलावा, बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के कारण क्या-क्या हैं, इसकी जानकारी नीचे दी गई है (5)

  • कॉर्पस कॉलोसम (जन्मजात मस्तिष्क दोष- मस्तिष्क के दाएं और बाएं पक्षों को जोड़ने व इनमें संचार करने वाली संरचना में गड़बड़ी)।
  • मस्तिष्क की चोट, स्ट्रोक व अन्य आघात)।
  • जन्म के दौरान बच्चे का कम वजन होना (1500 ग्राम से कम होना)।
  • पुरुष होना (अध्ययन के अनुसार महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में डिस्लेक्सिया होने का जोखिम अधिक होता है)।
  • बच्चे का देर से बोलना।
  • समय से पहले शिशु का जन्म होना (प्री मैच्योरिटी)।

अब हम किन बच्चों में डिस्लेक्सिया का खतरा अधिक होता है, यह बताएंगे।

डिस्लेक्सिया होने का जोखिम किन्हें ज्यादा होता है?

कुछ विशेष स्थितियां बच्चों में डिस्लेक्सिया होने का जोखिम बढ़ा सकती हैं। यह स्थितियां कुछ इस प्रकार हैं (5):

  • डिस्लेक्सिया का पारिवारिक इतिहास
  • भाषा का विकास होने में देरी (बच्चे का 3 से 4 साल में बोलना शुरू करना)
  • प्री मैच्योरिटी (समय से पहले बच्चे का जन्म होना)
  • जन्म के समय बच्चे का कम वजन होना (1500 ग्राम से कम वजन के बच्चे)

यहां अब हम बच्चों में डिस्लेक्सिया के लक्षण बताएंगे।

डिस्लेक्सिया होने के लक्षण | Dyslexia Symptoms in Hindi

बच्चों में डिस्लेक्सियां पढ़ने-लिखने व सीखने संबंधी एक समस्या है। ऐसे में आमतौर पर स्कूल जाना शुरू करने के बाद ही बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के लक्षण पहचानते हैं। यहां हम उन लक्षणों को उम्रवार बताने का प्रयास कर रहे हैं।

स्कूल जाने की उम्र के पहले के लक्षण (3 साल से छोटे बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के लक्षण) कुछ इस प्रकार हैं (9) :

  • शिशु का देर से बोलना
  • शब्दों को समझने में परेशानी होना
  • नई चीजों को सीखने और समझने में मुश्किल होना
  • कहानी या कविताएं समझने और याद रखने में दिक्कत महसूस होना
  • ध्यान देने में कठिनाई होना
  • ध्वनि सुनने का खराब स्तर

स्कूल जाने की उम्र में दिखाई देने वाले लक्षण (3 साल से बड़े बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के लक्षण) कुछ इस प्रकार हो सकते हैं (5) :

  • पढ़ना सीखने में कठिनाई होना
  • सोमेटिक कंप्लेंट (शारीरिक समस्याएं जैसे- दर्द होना, कमजोरी होना या सांस लेने में परेशानी होना)
  • स्कूल फोबिया (स्कूल से डर लगना)

किशोरावस्था व इसके बाद के चरण की उम्र में दिखाई देने वाले लक्षण (13 वर्ष व इससे बड़ी उम्र के बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के लक्षण) इस प्रकार हैं (10) :

  • पढ़ने की गति बहुत धीमी होना
  • अलग-अलग अक्षरों को जोड़ने में परेशानी होना
  • किसी शब्द को पढ़ने में कठिनाई होने पर वहां पर आसान शब्द का इस्तेमाल करना
  • शब्दों का गलत उच्चारण करना
  • लोगों के सामने कुछ पढ़ने में कठिनाई होना
  • नई भाषा सीखने में परेशानी होना

अब आगे हम डिस्लेक्सिया से बचाव के तरीके जानेंगे।

क्या डिस्लेक्सिया होने से रोका जा सकता है?

डिस्लेक्सिया, जीन व आनुवंशिक स्थिति है। इसी वजह से किसी डिस्लेक्सिया होने से रोका नहीं जा सकता। हां, बच्चे के शुरुआती लक्षणों की पहचान करके इन लक्षणों में कुछ हद तक सुधार लाया जा सकता है। एनसीबीआई पर प्रकाशिक एक अध्ययन के मुताबिक, बच्चों को पांच साल की उम्र या इससे छोटी उम्र में किंडरगार्डन (प्ले वे स्कूल) में भेजने से उनके लक्षणों की शुरुआती पहचान की जा सकती है (5)

शुरुआती लक्षणों की पहचान करके, बच्चे को इस तरह के स्कूल या कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है, जहां पर निम्नलिखित गतिविधियों की मदद से बच्चे की सहायता की जा सकती है (10)

  • खेल-खेल में बच्चे में भाषा का विकास करना।
  • कविताओं के रूप में बच्चे को चीजे सीखने व याद रखने में मदद करना।
  • ताली की धुन पर बच्चे को शब्दों व अक्षरों के उच्चारण याद कराना।
  • चित्रों के जरिए किसी बात को समझाना या स्पष्ट करना।

अब यहां हम डिस्लेक्सिया की जांच और उसकी पुष्टि के लिए अपनाए जाने वाले तरीके जानेंगे।

डिस्लेक्सिया का निदान कैसे होता है?

वर्तमान में बच्चों में डिस्लेक्सिया का निदान करने के लिए किसी तरह के रक्त परीक्षण या मस्तिष्क इमेजिंग टेस्ट का विकल्प उपलब्ध नहीं है। इस वजह से इसका निदान करने के लिए बच्चे के लक्षणों की निगरानी की जाती है। हेल्थ एक्सपर्ट बच्चे के पढ़ने-लिखने के तरीके व व्यवहार का आंकलन करके इसका पता लगाते हैं (5)। इसके लिए किस तरह की स्थितियों पर निगरानी रखी जाती है, यह नीचे पढ़ सकते हैं (2):

  • बच्चे में मौजूद भावनात्मक विकार को समझना
  • बच्चे की कमजोर बौद्धिक क्षमता को परखना
  • मस्तिष्क से जुड़ी समस्याएं और रोग की पहचान करना
  • बच्चे को मिली सामाजिक शिक्षा और परवरिश का स्तर जांचना
  • पारिवारिक इतिहास का पता लगाना
  • बच्चे में तंत्रिका संबंधी विकार को समझने के लिए जांच करना

बच्चों में डिस्लेक्सिया का उपचार कैसे होता है, आइए अब यह जानते हैं।

डिस्लेक्सिया का इलाज | Treatment of Dyslexia in Hindi

वर्तमान समय में बच्चों में डिस्लेक्सिया का इलाज करने के तरीके उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों में सीखने, समझने व अन्य कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित विकल्पों की अपनाया जा सकता है।

  • फोनिक्स इंस्ट्रक्शन (स्वरविज्ञान) : बच्चे को फोनिक्स इंस्ट्रक्शन देना (किसी खास ध्वनि के जरिए दिया जाने वाला निर्देश) डिस्लेक्सिया की समस्या में मदद कर सकता है (10)। इस तरह के कार्यक्रम में बच्चों को ध्वनियों में अक्षरों को बदलना सिखाया जाता है या उन्हें ध्वनि के आधार पर अक्षरों की पहचान करनी सिखाई जाती है।
  • मनोचिकित्सक उपचार : अगर बच्चे में डिस्लेक्सिया के साथ ही चिंता या अवसाद के भी लक्षण हैं तो इसके लिए मनोवैज्ञानिक उपचार का सहारा लिया जा सकता है (10)
  • दवाएं लेना : इसके अलावा, अगर किसी बच्चे में इन लक्षणों के अलावा अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता की बीमारी) है तो ऐसी स्थिति में मनोचिकित्सक उपचार के साथ ही दवाओं की भी खुराक दी सकती है (10)
  • बच्चे को अतिरिक्त शिक्षण सहायता देना : इसके तहत बच्चे को निजी या व्यक्तिगत तौर पर ट्यूशन पढ़ा सकते हैं। साथ ही बच्चे को स्पेशल डे क्लास के लिए भी भेजा जा सकता है (2)
  • सकारात्मक स्तर बढ़ाना : डिस्लेक्सिया से ग्रसित बच्चों का आत्मसम्मान कम हो सकता है। जिसे बढ़ाने में सकारात्मक व्यवहार उनकी मदद कर सकता है। इसके लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श की सहायता भी ले सकते हैं (2)

अंत में जानिए डिस्लेक्सिया से होने वाली जटिलताएं क्या हैं।

डिस्लेक्सिया से होने वाली जटिलताएं

बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के कारण निम्नलिखित जटिलाताएं हो सकती है (2)

  • बच्चों में डिस्लेक्सिया का होना सीधे तौर पर उनके मानसिक ज्ञान को कम कर सकता है। इस वजह से भविष्य में बच्चे को आर्थिक हानि का भी सामान करना पड़ सकता है।
  • बच्चे के व्यवहार के कारण उसे स्कूल में परेशानियां हो सकती हैं।
  • बच्चे का आत्मसम्मान कम हो सकता है।
  • बड़े होने पर भी पढ़ने की समस्या बनी रह सकती है।

आपको बच्चों में डिस्लेक्सिया होने के कारण, निदान, लक्षण और निवारण संबंधी बातें जानने को मिलीं। आपके किसी जानने वाले को डिस्लेक्सियो हो, तो उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।

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