छोटी-से-छोटी परेशानी को अनदेखा करना एक बड़ी समस्या का कारण बन जाता है। यही वजह है कि स्वास्थ्य को लेकर कभी लापरवाही बरतनी नहीं चाहिए। ऐसी ही एक परेशानी कम सुनाई देना है। आखिर क्यों कम सुनाई देता है, इसके लक्षण और उपचार जैसी सभी जानकारी यहां दी गई है।
शुरुआत में जानते हैं कि कम सुनाई देना कितनी आम समस्या है।
कम सुनाई देना कितना आम है? | Hearing Problem in Hindi
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) के अनुसार, दुनियाभर की 5 प्रतिशत से अधिक आबादी व 466 मिलियन लोगों को कम सुनाई देता है, जिनमें से 432 मिलियन युवा और 34 मिलियन बच्चे हैं। भारत से संबंधित आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं (1)।
- भारत में प्रत्येक 1000 बच्चों में से 4 को गंभीर कारणों से हियरिंग लॉस की शिकायत होती है।
- 15 वर्ष की आयु के 60 प्रतिशत बच्चों में यह परेशानी ऐसे कारणों से होती है, जिसका रोकथाम हो सकता है।
- 63 मिलियन यानी 6.3 प्रतिशत बच्चों को ऑडिटॉरी लॉस यानी श्रवण तंत्रिकाओं में होने वाली हानि से कम सुनाई देता है।
- प्रत्येक 1000 बच्चों में से 4 को गंभीर कारणों से हियरिंग लॉस की शिकायत होती है।
- भारत में हर साल दस लाख बच्चे कम सुनाई देने की समस्या के साथ ही जन्म लेते हैं।
रिसर्च के अनुसार, शहरों के मुकाबले गांवों में हियरिंग लॉस की समस्या अधिक देखी जाती है। साथ ही नवजात से लेकर 4 साल तक की उम्र के बच्चे में कम सुनने की शिकायत ज्यादा होती है। सुनने की क्षमता कम होने के कारण सीखने और बोलने के कौशल पर भी असर पड़ सकता है (1)।
चलिए, अब जानते हैं कम सुनाई देने के प्रकार कितने हैं।
कम सुनाई देने के प्रकार | Types of Hearing Problem in Hindi
कम सुनाई देने के चार प्रकार हैं। इन सभी के बारे में हम नीचे विस्तार से बता रहे हैं ( 2) (3):
- कंडक्टिव हियरिंग लॉस - इस प्रकार के हियरिंग लॉस में बाहरी या मध्य कान तक ध्वनि (आवाज) किसी कारण से पहुंच नहीं पाती है। यह कम सुनाई देने वाले सबसे आम प्रकार में से एक है, जो कान में संक्रमण या द्रव के कारण होता है। यह प्रकार आमतौर पर माइल्ड, अस्थायी और उपचार से ठीक होने वाला होता है।
- सेंसेरिन्यूरल हियरिंग लॉस - इसे नर्व डेफनेस भी कहा जाता है। इस हियरिंग लॉस का कारण कान की संरचना या सुनने की क्षमता को नियंत्रित करने वाली नसें होती हैं। यह समस्या जन्म के समय से या बाद में हो सकती है। यह परेशानी माइल्ड यानी हल्की आवाज को न सुन पाना या प्रोफाउंड (कुछ भी सुनाई न देना) हो सकती है।
- मिक्स्ड हियरिंग लॉस - इस हियरिंग लॉस के प्रकार में कंडक्टिव और सेंसरिन्यूरल दोनों शामिल हैं। इसमें कम सुनाई देने के पीछे बाहरी या मध्य कान तक आवाज न पहुंचना और कान की संरचना या सुनने की क्षमता को नियंत्रित करने वाली नसें शामिल होती हैं।
- ऑडिटरी न्यूरोपैथी स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर - कम सुनाई देने के इस प्रकार में ध्वनि सामान्य रूप से कान में प्रवेश तो करती है, लेकिन हियरिंग नर्व या कान के अंदरूनी हिस्से के डैमेज होने से दिमाग शब्दों को ठीक तरह से समझ नहीं पाता।
अब कम सुनाई देने और बहरापन का अंतर जानिए।
कम सुनाई देना और बहरापन में अंतर | Hearing Loss and Deafness in Hindi
कुछ सुनने में कठिनाई या सुनने की क्षमता में कमी को हियरिंग लॉस कहा जाता है। कम सुनाई देने की समस्या स्थायी या अस्थायी दोनों हो सकती है। किसी में यह शिकायत जन्म से पहले मौजूद होती है, तो किसी में जन्म के बाद विकसित होती है ( 4)।
इस दौरान कान का कोई एक या एक से ज्यादा भाग सामान्य तरीके से काम नहीं करता। ठीक तरीके से काम न करने वाले कान के भाग में बाहरी कान, मध्य कान, भीतरी कान, हियरिंग नर्व और ऑडिटरी सिस्टम (कान से दिमाग तक शब्द पहुंचने वाला हिस्सा) शामिल है (5)।
जब यह समस्या बढ़ जाती है, तो बहरापन का रूप ले सकती है। रिसर्च बताते हैं कि आवाज की 81 डेसिबल से अधिक की हानि को बहरापन कहा जा सकता है, जिसमें कुछ भी सुनाई नहीं देता। मतलब अगर किसी को 81 डेसिबल या उससे अधिक की आवाज सुनाई नहीं देती, तो वो बहरेपन की परेशानी से जूझ रहे हैं ( 4)।
कम सुनाई देने का ट्र्रीटमेंट सर्जरी या बेहरेपन के कारण के आधार पर किया जा सकता है (5)।
आगे बढ़ते हुए जानिए कि कम सुनाई देने के पीछे क्या-क्या कारण होते हैं।
कम सुनाई देने के कारण | Causes of Hearing Problems in Hindi
डब्लूएचओ द्वारा पब्लिश जानकारी के अनुसार, कम सुनाई देने के पीछे कई कारण होते हैं, लेकिन इसके स्पष्ट कारण का पता लगा पाना हर बार आसान नहीं होता है। चलिए, आगे हियरिंग लॉस के कुछ संभावित कारणों पर एक नजर डालते हैं (6):
- जेनेटिक (आनुवंशिक) - कम सुनाई देने की समस्या आनुवांशिक कारणों से हो सकती है। अगर परिवार के किसी एक सदस्य को यह समस्या रही हो, तो बच्चे को भी हियरिंग लॉस की शिकायत हो सकती है। आंकड़ों के अनुसार, करीबन 40 प्रतिशत बच्चों को आनुवंशिकी हियरिंग लॉस होती है।
- इंफेक्शन (संक्रमण) - कम सुनाई देने के पीछे का एक कारण इंफेक्शन भी हो सकता है, जिनमें इस तरह के संक्रमण शामिल हैं :
अगर गर्भावस्था के दौरान महिला रूबेला या साइटोमेगालोवायरस से संक्रमित होती है, तो बच्चे को जन्म से ही कम सुनाई दे सकता है।
मेनिनजाइटिस (दिमाग की सूजन), मम्प्स (गले की सूजन) और खसरा (दाने) जैसे संक्रमण होना भी कम सुनाई देने का कारण बन सकते हैं।
कान में होने वाला संक्रमण भी सुनने की क्षमता को कम कर सकता है।
- जन्म के समय की स्थिति - अगर बच्चे का समय से पहले जन्म होता या फिर जन्म के दौरान उसका वजन कम यानी लो बर्थ वेट होता है, तो हियरिंग लॉस की समस्या हो सकती है। साथ ही जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी, जन्म के समय पीलिया, कान की जन्मजात विकृतियां और सुनने वाली नर्व से संबंधित परेशानी होने पर भी कम सुनाई दे सकता है।
- कान से जुड़ी समस्याएं - कान से संबंधित बीमारी होने पर भी हियरिंग लॉस होता है। इसमें कान में वैक्स का ज्यादा बनना और किसी तरह के द्रव का जमना शामिल है। ये बचपन में होने वाली आम समस्याएं हैं, जिसके कारण हल्के से लेकर मध्यम हियरिंग लॉस हो सकता है।
- तेज आवाज - लंबे समय तक तेज आवाज सुनने से भी हियरिंग क्षमता कम हो सकती है। ऐसा पटाखे और शूटिंग की आवाज से हो सकता है। साथ ही हॉस्पिटल में छोटे बच्चों के केयर यूनिट में इस्तेमाल होने वाली मशीनों से निकलने वाली आवाज से भी बच्चों को कम सुनाई देने की परेशानी हो सकती है।
- दवाइयां - नियोनेटल इंफेक्शन (नवजात को होने वाले संक्रमण), मलेरिया, ट्यूबरक्लोसिस और कैंसर जैसी समस्याओं के उपचार में उपयोग होने वाली दवाओं से भी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
हम लेख के अगले भाग में कम सुनाई देने के लक्षण जानें।
कम सुनाई देने के लक्षण | Symptoms of Hearing Loss in Hindi
हियरिंग लॉस के लक्षण हर किसी में अलग दिखाई दे सकते हैं। ऐसे में किसी को अगर थोड़ा भी संदेह है कि कम सुनाई दे रहा है, तो इस बारे में डॉक्टर से जरूर बात करें। आगे हम कम सुनाई देने के लक्षण की जानकारी दे रहे हैं, जिससे इस परेशानी का अंदाजा लगाया जा सकता है (5):
शिशुओं में लक्षण :
- तेज आवाज से न चौंकना
- 6 महीने की उम्र के बाद आवाज देने पर बच्चे का न मुड़ना
- एक वर्ष के होने के बाद भी मां या पापा जैसे शब्द न बोल पाना
- लोगों को देखकर सिर हिलाना, लेकिन आवाज देने पर कोई हरकत न करना
- कुछ आवाजों को सुनना और कुछ को न सुन पाना
- बच्चों का देर से बोलना
आम लोगों में लक्षण :
- स्पष्ट रूप से बोल न पाना
- ठीक से ध्यान न दे पाना
- टीवी तेज आवाज में देखना
- कुछ बोलने पर जवाब में ‘क्या’ पूछना
आगे जानिए कि कम सुनाई देने का निदान किस तरह से किया जाता है।
कम सुनाई देने का निदान | Diagnosis of Hearing Loss in Hindi
कम सुनाई देने का निदान कुछ इस प्रकार से किया जाता है (7)।
- शारीरिक परीक्षण - इस जांच के दौरान डॉक्टर खुद यह पता लगाते हैं कि कम सुनाई दे रहे है या नहीं। इसके लिए डॉक्टर कान की संरचना देखने के साथ ही ताली मारकर परीक्षण कर सकते हैं।
- ओटोस्कोप - कम सुनाई देने की समस्या का निदान करने के लिए ओटोस्कोप उपकरण का उपयोग किया जा सकता है। इसकी मदद से कान के अंदर देखा जाता है, जिससे समस्या का पता लगाया जा सके।
- ऑडिटरी ब्रेन स्टेम रिस्पांस (एबीआर) टेस्ट - इस जांच के दौरान पैच का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे इलेक्ट्रोड कहते हैं। इस परीक्षण से यह देखा जाता है कि आवाज के प्रति ऑडिटरी (कान से दिमाग तक शब्द पहुंचने वाली) नर्व किस तरह की प्रतिक्रिया करती है।
- ओटोअकॉस्टिक एमिशंस टेस्ट - इस प्रक्रिया के दौरान माइक्रोफोन को प्रभावित व्यक्ति के कान में लगाया जाता है, जिससे कि कान के आसपास की आवाजों का पता लगाया जा सके। इसे लगाने के बाद आवाज इयर कैनाल में गूंजनी चाहिए। अगर आवाज नहीं गूंजती तो मतलब कम सुनाई देता है।
अब हम कम सुनाई देने का इलाज बताने जा रहे हैं।
कम सुनाई देने का ट्रीटमेंट | Treatment of Hearing Loss in Hindi
कम सुनाई देने की समस्या को ठीक करने के लिए कई ट्रीटमेंट किए जा सकते हैं। इस उपचार की प्रक्रिया में ये शामिल हैं (3) :
- हियरिंग एड्स - यह एक प्रकार की कान की मशीन होती है, जिसे कान के पीछे या अंदर पहना जाता है। इस मशीन की मदद से कम सुनाई देने वाली आवाज को बढ़ाया जा सकता है। इस तरह की मशीन को उच्च तकनीक से बनाया जाता है, जिसे कान के डॉक्टर उपयोग करने की सलाह दे सकते हैं।
- कोक्लियर इम्प्लांट - सुनने की क्षमता कम होने पर कोक्लियर इंप्लांट का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह भी एक मशीन है, जिसे सर्जरी की मदद से कान में लगाया जाता है। इसे कम सुनाई देने की गंभीर स्थिति में उपयोग में लगाया जाता है। यह आवाज को सीधे हियरिंग नर्व तक पहुंचाता है।
- सर्जरी - कम सुनाई देने की कुछ समस्याओं का इलाज सर्जरी से किया जाता है। इसमें इयर ड्रम या कान के अंदर की छोटी हड्डियों से संबंधित समस्याएं शामिल हैं।
- दवाई - अगर बच्चे को कान में संक्रमण के कारण कम सुनाई देता है, तो इस समस्या से राहत पाने के लिए विशेषज्ञ दवाई दे सकते हैं। दवाई का उपयोग करके संक्रमण से छुटकारा पाया जा सकता है। संक्रमण ठीक होने पर इसके कारण हुई कम सुनाई देने की शिकायत भी दूर हो सकती है (7)।
- स्पीच थेरेपी - ठीक से सुनाई न देने पर बोलने में भी परेशानी हो सकती है। ऐसे में बोलने की क्षमता को बेहतर करने के लिए उन्हें स्पीच थेरेपी लेने की सलाह दी जा सकती है (7)।
चलिए, अब जानते है कि कम सुनाई देने की समस्या से कैसे बचा जा सकता है।
कम सुनाई देने के बचाव | Prevention from Hearing Loss in Hindi
कम सुनाई देने की समस्या से बचाव के लिए कुछ तरीके अपना सकते हैं, जो कुछ इस तरह हैं (5)।
- तेज शोर से दूर रहें
- हेडफोन या इयरफोन का इस्तेमाल ज्यादा देर तक मत करें
- गर्भावस्था का दौर को स्वस्थ तरीके से बिताएं
- सुनिश्चित करें कि बच्चे को सभी टीके नियमित रूप से लगते रहें
- शोर वाले कार्यक्रम में कानों में इयर प्रोटेक्टर्स या इयरप्लग लगाएं
- तेज आवाज में गाने सुनने या टीवी देखने न दें
- अगर परिवार में किसी को कम सुनाई देने की समस्या रही है, तो गर्भधारण करने से पहले जेनेटिक काउन्सलिंग करवाकर इससे बचने का उपाय जान लें (7)
लेख के अंतिम भाग में जानिए कम सुनाई देने की स्थिति में डॉक्टर से सलाह कब लेनी चाहिए।
डॉक्टर से कब सलाह लें
अगर आपको लगता है कि बच्चे को कम सुनाई दे रहा है, तो इस बारे में डॉक्टर से तुरन्त सलाह लें इसके अलावा, कुछ इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर भी बच्चे को विशेषज्ञ के पास लेकर जाएं (7)।
- आपका तेज आवाज पर भी प्रतिक्रिया न करना
- कम सुनाई देने के साथ ही कान में दर्द होना
- बोलने की उम्र आने के बाद भी बच्चे का न बोलना
कम सुनाई देने के हल्के संकेत भी नजर आएं, तो उसे बिल्कुल नजरांदाज न करें। ऐसा होते ही तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क किया जाना चाहिए। इससे समस्या को गंभीर होने से रोकने के साथ ही इसके पीछे का कारण समझने और सही उपचार में मदद मिलती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें